यूके के मछली उद्योग में व्याप्त शोषण और तस्करी
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मछली पकड़ने के उद्योग में शोषण, मानवाधिकारों के हनन और गुलामी को रोकने के लिए यूके में सख्त़ कानून हैं। लेकिन अफ़सोस की बात है कि कई मछुआरे इस सुरक्षा से वंचित रह जाते हैं। यूरोप के बाहर से बड़ी संख्या में मछुआरे ब्रिटेन आते हैं, जिन पर सबसे ज़्यादा बुरा असर होता है। इनमें फिलीपींस, घाना, इंडोनेशिया, श्रीलंका और भारत के लोग शामिल हैं।
शोधकर्ताओं ने उन लोगों का सर्वेक्षण किया जो अठारह वर्ष से अधिक आयु के थे और या तो यूके के जलीय क्षेत्र में सक्रिय रूप से मछली पकड़ रहे थे या पिछले बारह महीनों में यूके में मछली पकड़ चुके थे, जिनमें वे लोग भी शामिल थे जो वर्तमान में यूनाइटेड किंगडम में नहीं रह रहे थे। शोधकर्ताओं ने 108 सर्वेक्षण एकत्र किए और सोलह प्रवासी मछुआरों के साथ विस्तार में चर्चा कर अपने निष्कर्षों को सुदृढ़ बनाया। क्योंकि उत्तरदाताओं को उन समूहों द्वारा चुना गया था जो प्रवासी मछुआरों की मदद करते हैं, इसलिए हो सकता है कि वे उन लोगों के प्रति पक्षपाती रहे हों जिन्हें बुरे अनुभवों से गुज़ना पड़ा था।
ब्रिटेन में मछली पकड़ने का रोज़गार प्राप्त करने से जुड़े ख़र्च का बोझ, यूरोप के बाहर से आए मछुआरों के लिए बहुत अधिक है। आधे गैर-यूरोपीय मछुआरों का कहना था कि क़र्ज़ चुकाने या घर लौटने की लागत से जुड़ी चिंताओं के कारण, वे अनैतिक माहौल में काम करने के लिए विवश हैं। इस तथ्य के बावजूद कि यूके के कानून के अनुसार जहाज़ के मालिक द्वारा परिनियोजन शुल्क दिया जाना चाहिए, 84% प्रवासी मछुआरों ने इसका भुगतान किया। इस भुगतान के लिए 83% मछुआरों को पैसे उधार लेने पड़े जिस वजह से वे क़र्ज़ में डूब गए।
अन्य प्रवासियों को यात्रा, भोजन और प्रस्थान करने से पहले चिकित्सा परिक्षण का ख़र्च उठाने के लिए क़र्ज़ लेना पड़ता है। एक गैर-यूरोपीय मछुआरे और क्रूइंग कंपनी (चालक दल एजेंसी/मैनिंग एजेंसी) के बीच संपर्क कराने के एक चौथाई से अधिक मामलों में अवैध संस्थाएँ शामिल थीं। गैर-यूरोपीय मछुआरे अवैध क्रूइंग कंपनियों को चुनते हैं क्योंकि वे आमतौर पर कम पैसे लेते हैं और पैसे लौटाने के लिए अधिक सुविधा देते हैं। हालांकि, अवैध क्रूइंग कंपनियों को चुनने के कारण ये मछुआरे जबरन श्रम और तस्करी के शिकार हो जाते हैं।
ब्रिटिश जहाज़ों पर काम करने वाले सभी मछुआरे के पास एक अनुबंध होना आवश्यक है, जिसे ‘मछुआरों का रोज़गार समझौता’ कहा जाता है। केवल 29% ब्रिटिश मछुआरों कहना है कि उनके पास ये अनुबंध है। इनकी तुलना में प्रवासी मछुआरों के पास ये अनुबंध होने की अधिक संभावना होती है, लेकिन उनका अनुबंध जहाज़ के मालिकों के बजाय क्रूइंग एजेंसी के साथ होता है। यदि रोज़गार समझौता कानूनी नहीं है, तो जहाज़ के मालिक के बजाय क्रूइंग एजेंसी को उत्तरदायी ठहराया जाएगा, जिससे मछुआरों के लिए कानूनी मदद मिल पाना और कठिन हो जाएगा। आधे प्रवासी मछुआरे या तो अनजान थे या उनके पास बीमारी, चोट और मृत्यु से संबंधित कवरेज नहीं था, जो कानूनी रूप से आवश्यक हैं। 16% प्रवासी मछुआरों ने बताया कि अनुबंध उनकी भाषा में नहीं था, जिससे उसे समझना और भी मुश्किल हो गया था। कानून द्वारा अनिवार्य करने के बावजूद, 20% प्रवासी मछुआरों के पास अपने समझौते की साइन की हुई कॉपी नहीं थी। समझौते की कॉपी के बिना, मछुआरों के लिए अपने अनुबंधों को कायम रखने में कठिनाई हो सकती है और उन्हें देश से निकाले जाने का ख़तरा भी होता है क्योंकि दस्तावेज़ की कमी के कारण उनके पास पर्याप्त सबूत नहीं होता है कि वे देश में क़ानूनी रूप से रह रहे हैं।
गलत अनुबंध होने के कारण प्रवासी मछुआरे अक्सर अपने रोज़गार के संबंध में सोच-समझकर सही निर्णय लेने में असमर्थ हो जाते हैं। भर्ती के दौरान इनमें से कई लोगों को उनके जहाज़ पर उपलब्ध सुविधाओं की गुणवत्ता के बारे में झूठ बोलकर गुमराह किया जाता है। आधे प्रवासी मछुआरों का कहना था कि उनके अनुबंध में उनके काम के घंटों के बारे में सटीक और पूरी जानकारी नहीं दी गई थी। अन्य 12% ने बताया कि उनके अनुबंध में काम के घंटों का कोई उल्लेख नहीं था।
प्रवासी मछुआरों में से तकरीबन 15% ने अपने मूल अनुबंध में निर्दिष्ट समय से अधिक समय तक काम किया था। जहाँ एक ओर जहाज़ के मालिकों का दावा था कि उन्हें कोविड-19 के दौरान वैकल्पिक कर्मचारी नहीं मिले थे, वहीँ शोध से पता चला है कि मालिकों के लिए उनके पास पहले से मौजूद चालक दल को बनाए रखना अधिक सस्ता था। अपनी अनुबंधित तिथि के बाद काम करने पर, कई कर्मचारियों पर अतिरिक्त कर्ज हो जाता है और उन्हें डर होता है कि उन्हें उनके मूल समझौते द्वारा सुरक्षित नहीं किया जाएगा या मुआवज़ा नहीं दिया जाएगा।
सभी गैर-यूरोपीय मछुआरों सहित अध्ययन किए गए 95% प्रवासी मछुआरे ट्रांजिट वीज़ा पर काम करते हैं। यह नाविकों को बंदरगाह में सीमित समय के लिए यूनाइटेड किंगडम में प्रवेश करने की अनुमति देता है, हालांकि उन्हें जहाज़ पर सोना पड़ता है। ट्रांजिट वीज़ा के तहत, एक मछुआरे को यूके क्षेत्रीय जल के बाहर अपने समय का “ज़्यादातर” काम करना पड़ता है, ये एक ऐसा प्रावधान है जो अस्पष्ट है और इसे लागू करना मुश्किल है। 65% गैर-यूरोपीय प्रवासी मछुआरों ने दावा किया कि उनकी अप्रवासन की स्थिति उनके लिए नौकरी बदलने को कठिन बना देती है। एक प्रवासी कर्मचारी अपना वीज़ा खोए बिना जहाजों को बदलने में भी असमर्थ हो सकता है क्योंकि ट्रांजिट वीजा किसी विशेष जहाज से जुड़ा होता है। कुछ प्रवासी कर्मचारी अपने वीज़ा पर सूचीबद्ध जहाजों के अलावा अन्य जहाजों पर काम करते हैं, जिससे उन्हें निर्वासन का खतरा होता है।
ट्रांज़िट वीज़ा पर आने वाले प्रवासियों को तट पर छुट्टी पर जाने की अनुमति दी जाती है, लेकिन कप्तान या जहाज़ के मालिक को छुट्टी के लिए आवेदन करना पड़ता है। नतीजतन, कप्तान और जहाज़ के मालिक प्रवासी को जाने की इजाज़त नहीं देते हैं। इसके अलावा, 15% मछुआरों ने बताया कि जहाज़ के मालिक के पास उनका पासपोर्ट और अनुबंध था, जो कानूनी रूप से जहाज़ छोड़ने के लिए आवश्यक होता है। कुछ कप्तान प्रवासियों को यह बताने के लिए कहते हैं कि वे कहाँ जा रहे हैं, किससे मिल रहे हैं और कब लौटेंगे, और यदि कप्तान मना कर देता है तो उन्हें जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। लगभग आधे प्रवासी मछुआरों ने बताया कि अप्रवास संबंधी चिंताओं के कारण वे जहाज़ छोड़कर नहीं जाते हैं।
मछुआरे अक्सर अत्यधिक काम के कारण थकान का शिकार हो जाते हैं। 60% मछुआरों ने कहा कि उन्होंने प्रतिदिन सोलह घंटे काम किया और एक तिहाई से अधिक ने बताया कि उन्होंने बीस घंटे से अधिक काम किया था। केवल 5% मछुआरों को उनके कानूनी रूप से आवश्यक आराम करने का समय मिला था। कई प्रवासी मछुआरों को अपने रहने का “ख़र्च” उठाने के लिए बंदरगाह में अतिरिक्त काम करना पड़ता है। कप्तान और जहाज़ के मालिक अक्सर उन प्रवासी मछुआरों को सज़ा देते हैं जो यह काम नहीं करते हैं और उन्हें जहाज़ छोड़ने नहीं देते हैं – यह जबरन श्रम का एक संभावित संकेत है। कुछ गैर-यूरोपीय मछुआरों को कप्तानों और जहाज़ के मालिकों के घरों में मुफ़्त में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। क्योंकि प्रवासियों को पर्याप्त आराम नहीं मिलता इसलिए उन्हें चोट लगने की संभावना अधिक होती है। 25% प्रवासी मछुआरे अपने सबसे हाल के काम में घायल हुए थे। जब तक कोई आपात स्थिति न हो तब तक ट्रांजिट वीज़ा पर मछुआरों को कानूनी रूप से चिकित्सा देखभाल लेने की अनुमति नहीं है, जिस कारण उनकी चोट और गंभीर हो जाती हैं।
प्रवासी मछुआरे प्रति घंटे औसतन £3.51 कमाते हैं, जो राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन के एक तिहाई से भी कम है। यह अनुमानित आँकड़ा भी शायद बहुत कम है। यह बंदरगाह में काम किए गए घंटों का हिसाब नहीं रखता है और काम किए गए घंटों को कम करके आँकता है। लेखकों ने पाया कि एक मछुआरे की राष्ट्रीयता उनके वेतन से जुड़ी हुई थी और भुगतान पदानुक्रम के हिसाब से होता है: फिलीपींस के मछुआरों को सबसे अधिक मज़दूरी दी जाती है, इसके बाद घाना, श्रीलंका और भारत के मछुआरे (आमतौर पर समान वेतन) आते हैं और अंत में इंडोनेशिया के मछुआरे।
अधिक काम करने के अलावा, मछुआरों के काम करने की स्थिति बहुत ख़राब होती है। 80% लोगों ने बताया कि पानी की गुणवत्ता बेहद ख़राब थी। एक व्यक्ति ने साझा किया कि उसे फ्रिज की नमी से पीने का पानी प्राप्त करना पड़ता था। 30% से कम साक्षात्कारकर्ताओं ने कहा कि उन्हें कभी भी वेतन में कमी, खराब कामकाजी परिस्थितियों, जहाज़ पर काम ना करने, अपमान या मानसिक सदमा, पुलिस को रिपोर्ट किए जाने, शारीरिक या यौन हिंसा की धमकी नहीं दी गई थी। तीन में से एक मछुआरे ने काम पर यौन या शारीरिक शोषण का शिकार होने की सूचना दी। तीन-चौथाई प्रवासी मछुआरों ने अपने कप्तानों से नस्लीय भेदभाव का सामना करने के बारे में बताया।
इसकी संभावना अधिक है कि प्रवासी मछुआरे जबरन श्रम सहन कर लेते हैं। सामान्य तौर पर, यह पता लगाना मुश्किल है कि लोगों को काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है या नहीं। किसी प्रवासी को काम करने के लिए मजबूर किया गया है, ये दिखाने के लिए शोधकर्ताओं को कुछ संकेतकों की आवश्यकता होती है जैसे – प्रवासी के अनैच्छिक श्रम और उसकी कमज़ोरियों का शोषण करने के संकेत मौजूद होना या प्रवासी के काम छोड़ने की बात कहने पर उन्हें धमकाना या दंडित करने जैसे संकेत मिलना। शायद शोधकर्ताओं को इन दोनों की आवश्यकता होती है। इस मानदंड के अनुसार, 19% प्रवासी संभावित रूप से जबरन श्रम के शिकार थे, जबकि 48% प्रवासी संभवतः जबरन श्रम के शिकार थे।
इस तथ्य के बावजूद कि मछली पकड़ने के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर शोषण होता है, मछुआरों, विशेष रूप से प्रवासी कर्मचारियों के पास अपनी रक्षा के लिए सीमित विकल्प हैं। मछुआरे शायद ही कभी अधिकारियों को शोषण की रिपोर्ट करते हैं। 65% मछुआरे डरते हैं यदि वे अवैध काम करने की स्थिति की जानकारी देते हैं तो उन्हें प्रतिबंधित कर दिया जाएगा और प्रवासी मछुआरे विशेष रूप से प्रतिबंधित होने से घबराते हैं। कई प्रवासी मछुआरे बदसलूकी या अत्याचार की रिपोर्ट नहीं करते हैं क्योंकि वे ट्रांजिट वीज़ा पर हैं और अपने जहाज़ को छोड़ने में असमर्थ हैं।
यह स्पष्ट है कि इस उद्योग में व्याप्त मानवाधिकारों के हनन को देखते हुए, पशु कल्याण कार्यकर्ताओं के लिए यह मुद्दा अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण है। कानूनी कमियों को दूर करने और वंचित मछुआरों को निरंतर दुर्व्यवहार और शोषण से बचाने के लिए, यूके के श्रम कानूनों को सख्त किया जाना चाहिए। इसके अलावा, कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय गुलामी विरोधी कानून मानकों का पालन करने के लिए यूके सरकार पर ज़ोर देना चाहिए। अंत में, उपभोक्ताओं को इस उद्योग में होने वाले अन्याय के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए, साथ ही यह भी बताया जाना चाहिए कि कैसे उनकी समुद्री खाद्य उत्पादों की ख़रीदारी अनैतिक और अवैध व्यवहार को बढ़ावा दे सकती है।
