राजनीतिक सीमाओं को पार करने के लिए वीगनवाद और शाकाहारी तर्क को फ़िर से परिभाषित करना
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यह स्पष्ट रूप से जानते हुए भी कि माँस खाने से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, कई पर्यावरणविद तुरंत शाकाहारी और वीगन आहार विचारधारा, जिसे रूढ़िवादी वामपंथी आदर्श के रूप में देखा जाता है, अपनाने के लिए तैयार नहीं होते हैं। इस अध्ययन का दावा है कि राजनीतिक कारक नहीं बल्कि नैतिक मनोविज्ञान – आहार संबंधी आदतोंऔर राजनीतिक झुकाव का अधिक सटीक और अहम संकेतक है।
इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने दो अलग-अलग मौजूदा पैमानों का उपयोग करके मात्रात्मक (संख्यात्मक) आकलन के एक जटिल सेट में गहन शोध किया और फिर उन्हें नैतिकता, राजनीति और शाकाहार के बीच एक स्पष्ट संबंध दिखाने के लिए मिला दिया। इस लेख के प्रयोजन के लिए, शाकाहारियों में से केवल माँस खाने वालों को हटाया गया था और उन लोगों को शामिल किया गया था जो ख़ुद को ‘पेसकेटेरियन’ कहते हैं: यानी मछली जैसे समुद्री जानवरों को खाने वाले।
इस अध्ययन में 670 जर्मन नागरिक शामिल थे, जिनकी औसत उम्र लगभग 28 वर्ष थी और जिनमें से अधिकांश लोग काफ़ी शिक्षित थे। कई शाकाहारी और वीगनवाद अध्ययनों की तरह, इसमें महिलाओं और विश्वविद्यालय के छात्रों का अधिक प्रतिनिधित्त्व था। इनमें से दो तिहाई सर्वाहारी थे (शाकाहार और माँसाहार दोनों खाने वाले), पाँच में से एक शाकाहारी था, 10 में से एक माँसाहारी और 6.4% वीगन आहार ग्रहण करते थे। वामपंथी-दक्षिणपंथी, उदारवादी-रूढ़िवादी स्केल पर, 69% लोग वामपंथी की ओर झुकाव वाले थे।
शोधकर्ता जानना चाहते थे कि वीगनवादी और शाकाहारियों ने रूढ़िवादी दक्षिणपंथी विचारधारा के बजाय उदारवादी वामपंथी राजनीतिक प्राथमिकता को क्यों चुना। जलवायु परिवर्तन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए दक्षिणपंथी पर्यावरणविदों के आहार विकल्पों को बदलने के लिए इन संबंधित विचारधाराओं का क्या प्रभाव पड़ सकता है?
नैतिक आधार सिद्धांत (MFT) के अनुसार, धारणा और व्यवहार, तार्किक और सचेत प्रक्रियाओं के बजाय ज़्यादातर अवचेतन सहज ज्ञान युक्त प्रक्रियाओं से प्रभावित होते हैं। एमएफटी ने एक ‘पंच नींव’ मॉडल प्रस्तुत किया जिसमें अलग-अलग राजनीतिक झुकाव वाले लोगों के लिए विभिन्न नैतिक मूल्यों के महत्व पर ज़ोर देते हुए नुक्सान, निष्पक्षता, वफ़ादारी, अधिकार और शुद्धता जैसे आयाम शामिल हैं। जिन लोगों ने नुक्सान और/या निष्पक्षता को प्राथमिकता दी, उनके उदार होने की संभावना अधिक थी, जबकि वफ़ादारी, अधिकार या पवित्रता को प्राथमिकता देने वाले अधिक रूढ़िवादी थे।
माँस खाने का औचित्य (MEJ) पैमाना, शोधकर्ताओं को हर उत्तरदाता के लिए माँस खाने के सबसे आवश्यक कारणों को बताने में मदद करता है। इस पैमाने में तीन उप-स्तर हैं, जिनमें से प्रत्येक में स्पष्टीकरण के तीन तत्व होते हैं। ये इस प्रकार हैं:
● प्रो-माँस (माँस खाने का समर्थन) रवैया, इनकार, पदानुक्रम के आधार पर समर्थन
● दो बिल्कुल अलग-अलग श्रेणियों में बाँटना, हदबंदी, धार्मिक कारण
● आनाकानी करना, स्वास्थ्य संबंधी कारण, मानव भाग्य संबंधी कारण
प्रत्येक उप-वर्ग में जानवरों के सेवन (इनकार, हदबंदी, आनाकानी करना) को सही ठहराने के लिए एक अप्रत्यक्ष कारण है, दूसरे कारण अधिक प्रत्यक्ष हैं और आश्चर्यजनक रूप से पुरुषों द्वारा अधिक उपयोग किए जाते हैं।
जहाँ उत्तरदाताओं ने बताया कि वे कुछ खाद्य पदार्थों से परहेज़ करते हैं, तो शोधकर्ताओं ने इन कारणों को या तो स्वास्थ्य, घृणा, नैतिकता, वज़न, धर्म, पारिस्थितिकी या अन्य के रूप में वर्गीकृत किया। इस उपाय ने, एमएफटी और एमईजे पैमाने के साथ मिलकर इस अध्ययन के लिए कुल 19 मापदंड पेश किए जिसके परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में डेटा प्राप्त हुआ। इसलिए संभव विश्लेषण की मात्रा को सीमित किया गया और चर्चा कुछ हद तक वर्णनात्मक और व्याख्यात्मक रही। बहरहाल, यह स्पष्ट था कि पक्ष के समर्थन में संभावित सुधारों के बारे में लाभकारी जानकारी मौजूद थी।
माँस खाने, नैतिक आधार और राजनीतिक झुकाव के बीच एक “दिलचस्प पारस्परिक प्रभाव” पाया गया। वीगनवादी और शाकाहारियों का नैतिक सिद्धांतों के रूप में न्याय और देखभाल (चोट की प्रतिक्रिया में) के प्रति अधिक झुकाव था, जबकि माँस खाने वालों ने शुद्धता और अधिकार को अधिक महत्त्व दिया। इसके अलावा, माँसाहारी राजनीतिक रूप से अधिक दक्षिणपंथी थे और सभी एमईजे रणनीतियों का समर्थन करते थे। वामपंथी और मध्यमार्गी सर्वाहारी, वीगनवादी और शाकाहारियों की तुलना में नैतिक रूप से शुद्धता और अधिकार में भिन्न थे, लेकिन जब दक्षिणपंथी सर्वाहारी और वीगनवादी सहित शाकाहारियों की तुलना की गई तो ऐसा कोई रुझान सामने नहीं आया।
हम अक्सर देखते हैं कि हर कोई एक संदेश के साथ जुड़ाव महसूस नहीं करता है या यूँ कहें कि उस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देता है और हमारा शोध दक्षिणपंथी पर्यावरणविदों को वीगन या शाकाहारी भोजन अपनाने के लिए कई वैकल्पिक तरीकों का सुझाव देने में सक्षम था। उदारवादी नैतिक तर्क रूढ़िवादियों को कम प्रभावित कर पाते हैं, यहाँ तक कि उनका प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकता है जो वीगनवाद या शाकाहार के प्रति उनकी नकारात्मकता को और भी बढ़ा सकता है। अभियान और प्रचारकों को ऐसे लोगों तक पहुँचने के लिए ऐसा तरीका अपनाना होगा जो कम (या अलग तरह से) नैतिक रूप से कम प्रेरक होते हैं। एमएफटी मनोविज्ञान राजनीतिक झुकाव और आहार संबंधी पसंद दोनों के बारे में बताता है और यह अध्ययन कार्यकर्ताओं को माँस-मुक्त आहार को व्यापक पर्यावरण आंदोलन का अभिन्न अंग बनाने के लिए महत्वपूर्ण संदेश विकसित करने में मदद कर सकता है।