एक्वाकल्चर को हर दिशा से कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
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जैसे-जैसे आबादी बढती जा रही है, कम और मध्यम आय वाले देशों में अधिकांश लोग प्रोटीन की बढती माँग को पूरा करने के लिए जलीय कृषि की ओर जा रहे हैं। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि यह माँग २०३० तक वैश्विक जलीय कृषि उद्योग में 62% वृद्धि का कारण बनेगी। दूसरी ओर, रोगानुरोधी प्रतिरोध और बढ़ता तापमान, जलीय कृषि के लिए दोहरा ख़तरा बनते जा रहे हैं। वैश्विक तापमान में वृद्धि और बढती माँग को पूरा करने के लिए जलीय कृषि उत्पादन बढ़ने के साथ ही ये समस्याएँ और भी गंभीर होती जाएँगी। इन मुद्दों को मददेनज़र रखते हुए ,एंटीमाइक्रोबियल के उपयोग पर तत्काल सख्त नियंत्रण की आवश्यकता है। इसके साथ ही, ऐसे पौधों के प्रोटीन स्रोतों की तलाश करना समझदारी हो सकती है जो मानव उपभोग के लिए अधिक स्थिर और लंबे समय तक चलने वाले हों।
रोगों को ठीक करने और विकास प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए अंतर्देशीय और जलीय पशुपालन दोनों में एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है। हालांकि, जैसा कि मानव प्रयोगशाला के वातावरण में देखा गया है, एंटीमाइक्रोबियल उपचारों का अति प्रयोग रोगजनकों के कमज़ोर उपभेदों को मार देता है, जिससे मज़बूत एंटीमाइक्रोबियल-प्रतिरोधी उपभेद बिना किसी रुकावट के पनपने लगते हैं। ये प्रतिरोधी उपभेद तब जलीय जानवरों की पूरी आबादी को बड़ी आसानी से नष्ट कर सकते हैं।
460 लेखों के एक मेटा-विश्लेषण में, शोधकर्ताओं ने 40 देशों के लिए जलीय कृषि और तापमान, जलवायु परिवर्तन की भेद्यता और मानव नैदानिक MAR में बहु-एंटीबायोटिक प्रतिरोध (MAR) के बीच संबंधों की जाँच की, जो दुनिया के 93% जलीय कृषि का निर्माण करते हैं। उन्होंने पाया कि जलीय कृषि MAR का मानव नैदानिक MAR, जलवायु परिवर्तन संवेदनशीलता और औसत वार्षिक तापमान के साथ गहरा संबंध है। इसके अलावा, उन्होंने ये भी पाया कि ये तीनों ख़तरे मुख्य रूप से कम और मध्यम आय वाले देशों में आकर मिल जाते हैं, जहाँ आमतौर पर पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री उपलब्ध नहीं होती हैं। नतीजतन, अगर इन देशों की आबादी जलीय कृषि पर बहुत अधिक निर्भर होने लगती है, तो जलीय कृषि MAR तेज़ी से व्यापक कुपोषण में तब्दील हो सकता है।
विश्लेषण से यह भी पता चला है कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, विभिन्न बीमारियों से संक्रमित मछलियों की मृत्यु दर भी बढ़ने लगती है। पानी के तापमान में हर 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने से बीमार मछली की मृत्यु दर 3-6% बढ़ जाती है। इसका मतलब है कि जब वैश्विक तापमान में वृद्धि होगी, तो MAR और सामान्य बीमारियों से होने वाली मृत्यु की बढ़ती दर, दोनों जलीय कृषि के लिए ख़तरा उत्पन्न करेंगे। जिन देशों में जलीय कृषि MAR और वार्षिक तापमान अधिक है, वहाँ ये दोनों ख़तरे परस्पर जुड़े हुए हैं। किसी दिए गए देश में औसत वार्षिक तापमान 9.1% जलीय कृषि MAR को दिखाता है। यह तालमेल कम और मध्यम आय वाले देशों में सबसे अधिक दिखाई देता है, जो जलवायु परिवर्तन (पर्यावरण और आर्थिक दोनों) के दृष्टिकोण से बेहद कमज़ोर भी होते हैं।
शोधकर्ताओं ने निष्कर्षों के आधार पर मानव प्रयोगशाला के साथ-साथ जलीय कृषि और पशुपालन में एंटीमाइक्रोबियल के उपयोग को कड़ाई से नियंत्रित करने की सलाह दी है। ये संकेतक आपस में बारीकी से जुड़े हुए हैं और शायद एक-दूसरे को मज़बूत भी करते हैं: मानव और पशु कृषि स्रोतों से निकलने वाला अनुपचारित अपशिष्ट जल आसपास के जल स्रोतों को दूषित करता है, जिससे जलीय कृषि प्रभावित होती है और जलीय कृषि से सक्रीय रोगजनक आसपास के लोगों और स्थल-जीवी जानवरों द्वारा उपयोग किए जाने वाले जल स्रोतों में प्रवेश कर सकते हैं । मानव नैदानिक MAR 17.9% जलीय कृषि MAR को दिखाते हैं और जलीय कृषि से प्रतिरोधी रोगाणु भोजन की उपलब्धता में कमी उत्पन्न कर सीधे-सीधे मनुष्यों को ख़तरे में डाल सकते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रतिरोधी रोगाणुओं के प्रसार को रोकने के लिए बेहतर सफ़ाई और स्वच्छता प्रणाली व्यवस्था भी अति आवश्यक है। वे एंटीमाइक्रोबियल के अति प्रयोग के ख़िलाफ़ हैं और इसके बजाय टीकाकरण, पौष्टिक आहार और बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से जलीय कृषि रोग के प्रबंधन की सिफ़ारिश करते हैं।
ये कदम यकीनन जलीय कृषि प्रणाली के पतन को रोकने में मदद कर सकते हैं। लेकिन, दुनिया भर में प्रोटीन की माँग को पूरा करने के लिए इस तेज़ी से बढ़ते हुए उद्योग पर निर्भर करना ख़तरे से ख़ाली नहीं होगा। बढ़ते तापमान के प्रति जलीय कृषि उद्योग की संवेदनशीलता, साथ ही एंटीमाइक्रोबियल पर इसकी निर्भरता, जो प्रतिरोधी रोगजनकों के ख़िलाफ़ तेज़ी से प्रभावहीन होती जा रही है, इसे भरोसेमंद नहीं बनाती है। दुनिया को मछली पालन की विधि सिखाने के बजाय, शायद हमें लोगों को ऐसे टिकाऊ प्रोटीन-समृद्ध पौधों को विकसित करना सिखाना चाहिए जो हम सभी को लगातार और सुरक्षित रूप से पोषित कर सके।
https://www.nature.com/articles/s41467-020-15735-6
