एक्वाकल्चर: दो क्रूर प्रक्रियाओं में से बेहतर विकल्प?
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मछली और अन्य समुद्री जीव अक्सर मनुष्यों के नैतिक विचार के दायरे से बाहर एक अनिश्चित स्थिति में मौजूद हैं। आज ऐसे कई लोग मौजूद हैं जो अधिकांश जानवरों का माँस खाने से परहेज़ करते हैं लेकिन समुद्री जीवों को बड़े चाव से खाते हैं। माँस का सेवन करने वाले कई लोग उस प्रक्रिया को लेकर असहज महसूस करते हैं जिसके द्वारा पशुओं को पकड़ा जाता है, लेकिन जब वे स्वयं मनोरंजन के रूप में मछली पकड़ते हैं तो उन्हें मारने में झिझक महसूस नहीं करते। पशु कल्याण समर्थकों के बीच भी, यह तय करना मुश्किल हो सकता है कि इन प्राणियों के संरक्षण को कितनी प्राथमिकता दी जाए, जिनका तंत्रिका तंत्र मनुष्यों से बहुत अलग है। यह अध्ययन मछलियों पर जलीय कृषि के प्रभाव का नहीं बल्कि पर्यावरण पर इसके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करता है, पशु कल्याण समर्थकों को एक अलग नज़रिया दे सकता है ताकि मछली पालन के लाभ और नुक्सान का मूल्यांकन किया जा सके।
प्रकृति और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने 2020 की एक रिपोर्ट पर महत्वपूर्ण कार्य किया था, जिसमें मूल स्थान से लेकर खेतों तक पहुँचने के दौरान होने वाले वैश्विक एक्वाकल्चर के ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन की मात्रा का अनुमान लगाने की कोशिश की गई थी। इसके लिए न केवल प्रत्यक्ष मछली फार्म संचालन के प्रभाव को मापने की आवश्यकता थी – बल्कि पम्पिंग और रौशनी के लिए इस्तेमाल की गई बिजली और कृषि वाहनों के लिए ईंधन के उपयोग के साथ-साथ भूमि उपयोग परिवर्तन, उर्वरीकरण, जुताई, परिवहन, चारे के सम्मिश्रण और जल नाइट्रीकरण से होने वाले जीएचजी उत्सर्जन को भी मापना आवश्यक था। उन्होंने प्रजातियों के प्रकार और क्षेत्र के आधार पर इन उत्सर्जनों की गणना की, जिससे हर स्तर पर जीएचजी उत्सर्जन की एक आश्चर्यजनक विस्तृत तस्वीर सामने आई। इसके लिए शोधकर्ताओं ने एफएओ, जर्नल लेखों और क्षेत्र के विशेषज्ञों से उपलब्ध सबसे अद्यतित डेटा का उपयोग किया। उन्होंने प्रमुख उत्पादक स्थानों में प्रमुख प्रजातियों के समूहों के लिए तब तक डेटा एकत्र किया जब तक कि वे वैश्विक उत्पादन का 93% हिस्सा नहीं बन गए और शेष 7% का अनुमान लगाने के लिए इन आंकड़ों का सहारा लिया। चारा खिलाने की लगातार बदलती प्रक्रियाओं और कुछ डेटा के पुराने होने के कारण, परिणाम कुछ हद तक अलग हो सकते हैं, लेकिन स्थिति की व्यापक जानकारी अपेक्षाकृत सटीक मानी जा सकती है।
यह अध्ययन इस धारणा के आधार पर किया गया था कि वैश्विक पोषण और रोज़गार के लिए जलीय कृषि महत्वपूर्ण है और ये कयास लगाए जा रहे थे कि यह उद्योग लगातार बढ़ता रहेगा। पशु समर्थक आमतौर पर पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करते हैं, लेकिन विस्तार की आवश्यकता होने पर उद्योगों को स्थायी तरीके से विकसित करने की पहल का समर्थन भी करते हैं। एक स्वस्थ ग्रह निश्चित रूप से उस पर रहने वाले जानवरों को लाभांवित करता है। हालाँकि, यह देखते हुए कि जलीय कृषि एक ऐसा उद्योग है जो जानवरों पर अत्याचार और उनकी हत्या करने के इर्द-गिर्द घूमता है, पशु समर्थक आमतौर पर इसके विस्तार का विरोध करते हैं। फ़िर भी, भूमि पशु कृषि और पादप कृषि की तुलना में जलीय कृषि के लाभ को समझने से हमें अपनी पैरवी और लक्ष्यों को आकार देने में मदद मिल सकती है।
अध्ययन से पता चला कि जलीय कृषि में 57% ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन चारा उत्पादन के कारण होता है। द्विकपाटियों की तुलना में पख मछली (फ़िनफ़िश) और झींगा प्रति किलो अधिक जीएचजी का उत्पादन करते हैं। फ़िनफ़िश उच्च उत्सर्जक हैं क्योंकि कई फ़िनफ़िश को अन्य मछलियाँ खिलाई जाती हैं और क्योंकि वे भोजन को अकुशल रूप से माँसपेशियों में परिवर्तित करती हैं। पानी के वातन और पम्पिंग के लिए आवश्यक ऊर्जा के कारण झींगा भी भारी उत्सर्जक होते हैं। द्विकपाटी का उत्सर्जन-से-अंत उत्पाद अनुपात कम होता है क्योंकि वे अपने वातावरण में पहले से मौजूद पोषक तत्वों को खाते हैं। सामान्य तौर पर, मछली ज़मीन पर रहने वाले जानवरों की तुलना में अधिक कुशलता से चारे को माँसपेशियों में परिवर्तित कर सकती हैं क्योंकि उन्हें अपनी जीवन शैली बनाए रखने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है और उनकी प्रजनन दर भी अधिक होती है। इसलिए हालाँकि, जलीय कृषि की उत्सर्जन तीव्रता (ईआई जीएचजी उत्सर्जन प्रति किलो मरे हुए पशु के वज़न को मापने की इकाई है) 10 kgCO2e/kgCW से कम है, गायों का ईआई 50 के करीब है, भेड़ और बकरियों का ईआई 40 के आसपास है और सूअरों और मुर्गियों का ईआई जलीय कृषि के बराबर है।
इन आंकड़ों से पता चलता है कि पशु कृषि से जलीय कृषि में बदलाव करना पर्यावरण के लिए लाभदायक हो सकता है। अभी यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि इस तरह का बदलाव पशुओं के हित के लिए बेहतर होगा या नहीं। पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव, पशु मुक्ति की दिशा में बढ़त के रूप में इसकी उपयोगिता और इसके संभावित पशु कल्याण लाभ को देखते हुए कहा जा सकता है कि जलीय कृषि अपने साथ हानि और लाभ दोनों लेकर आता है।
पर्यावरण पर प्रभाव
इन अनुमानों के अनुसार, मानव जनित जीएचजी उत्सर्जन में जलीय कृषि का लगभग .49% हिस्सा है, जो मोटे तौर पर भेड़ पालन के जीएचजी उत्सर्जन के बराबर है। ईआई के संदर्भ में, मुर्गियों और सूअरों को छोड़कर भोजन के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी स्थलीय जानवरों की तुलना में समुद्री जीव पारिस्थितिक रूप से अधिक अनुकूल हैं। इसका मतलब है, कुछ उपसमूह अपवादों को छोड़कर, एक किलो गोमाँस की तुलना में एक किलो मछली या बड़े सीप के माँस का उत्पादन करना पर्यावरण के लिए कहीं बेहतर है। क्योंकि भूमि जानवरों के पालन की तुलना में मछली पालन अपेक्षाकृत नया उद्योग है, लेखकों का मानना है कि भविष्य में नवाचार के लिए बहुत गुंजाइश है जो जलीय कृषि के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को और भी कम कर सकते हैं।
बेशक, प्रोटीन प्राप्त करने के लिए जानवर हमारा एकमात्र स्रोत नहीं हैं। भले ही गायों और भेड़ों को पालने की तुलना में पख मछलियों और द्विकपाटों को पालना पर्यावरण की दृष्टि से अधिक अनुकूल है, फ़िर भी अनाज, फ़लियाँ और मेवे उगाना पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत और ज़िम्मेदार होना कहलाएगा। जब पहले से ही अधिक पारिस्थितिक रूप के अनुकूल विकल्प मौजूद हैं, तो गायों के बदले मछली सेवन के पर्यावरणीय लाभों की वकालत करना कठिन है।
बीच का रास्ता
वर्तमान में ऐसे कई लोग हैं जो पूरी तरह से माँस का सेवन छोड़ने में असमर्थ या अनिच्छुक हैं, जैसा कि माँसाहारियों की उपस्थिति से संकेत मिलता है, फ़िर भी वे जानवरों के सेवन को “सीमित” करने का प्रयास कर रहे हैं। यह नैतिक रूप से विरोधाभासी लग सकता है, लेकिन यह माँस मुक्त आहार की दिशा में लिए गए पहले कदम के रूप में मददगार साबित हो सकता है। कोई व्यक्ति जो शुरुआत में शाकाहारी या वीगन आहार अपनाने से घबराता है, वह पहले पाश्चात्य बन सकता है और अनुभव कर सकता है कि ये आहार भी उसकी इच्छा पूरी कर सकते हैं और उसका भोजन के साथ एक संतोषजनक संबंध बना रहेगा। इससे उसे और अधिक बदलाव करने का आत्मविश्वास मिलेगा और वह अंततः माँस-मुक्त आहार अपना सकता है।
भूमि के जानवरों को अपने आहार से हटाना अधिक नैतिक आहार की ओर लिया गया कदम साबित हो सकता है। आज लाखों शाकाहारी लोगों की तादाद और बाज़ार में कई प्रकार के शाकाहारी उत्पादों की बढती विविधता, इस मुद्दे को उठाती है कि क्या ऐसा कदम उठाना आवश्यक है। पर्यावरण या पशु कल्याण संबंधी चिंताओं को मददेनज़र रखते हुए, स्थलीय पशुओं के साथ-साथ मछलियों के सेवन का त्याग करना भी बेहतर और संभव है।
पशु कल्याण
इस क्षेत्र के बारे में कह पाना शायद सबसे कठिन है। एक ओर, पशु कृषि से जलीय कृषि में बदलाव करने का मतलब होगा “उच्च-क्रम” प्राणियों के बजाय “निम्न-क्रम” प्राणियों को मारना। हालाँकि, यह तेज़ी से स्पष्ट होता जा रहा है कि फ़िनफ़िश दर्द और पीड़ा महसूस करती हैं, जबकि द्विकपाटी जैसे स्नायविक रूप से सरल जानवरों में यह कम स्पष्ट है। प्रमाण की कमी होने से यकीनन यह नहीं कहा जा सकता कि ये स्थिति मौजूद है ही नहीं, लेकिन कोई यह तर्क भी दे सकता है कि जिस जानवर की भावना स्पष्ट रूप से प्रकट है उसकी तुलना में उस जानवर को मारना ज़्यादा बेहतर है जिसकी भावना के बारे में निश्चित तौर पर हमें पूरी जानकारी नहीं है।
दूसरी ओर, यदि गोमाँस और सूअर का माँस खाने वाले लोग क्लैम यानी बड़ी सीप और ऑयस्टर यानी सीप खाने लगे, तो कहीं अधिक जानें जाएँगी। एक गाय के बराबर माँस पैदा करने के लिए कई छोटे समुद्री जीवों की हत्या करनी होगी। पशु कल्याण के नज़रिए से देखा जाए तो इस तरह सेवन में बदलाव करके, कम संवेदनशील जीवों को मारना, शोषण को समाप्त करना नहीं कहा जा सकता। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि ऐसा करना गलत दिशा में एक बड़ा कदम रखने के समान है जहाँ अधिक प्राणियों को मारा जाएगा। इसलिए कुल मिलाकर, यह उपाय कारगर नहीं है। किसी भी प्राणी की जान नहीं जानी चाहिए। पशु अधिवक्ताओं के लिए उन लोगों के साथ एकमत मुश्किल है जो एक ऐसी दुनिया में जलीय कृषि का विस्तार करना चाहते हैं, जहाँ मेवे, मटर और अनाज जैसे शाकाहारी विकल्पों की भरमार है।
निष्कर्ष
यह अध्ययन एक्वाकल्चर का पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त मूल्यांकन करती है और हम प्रोत्साहित करते हैं कि अधिक जानकारी के लिए आप उनकी तालिकाओं और चार्ट पर एक नज़र ज़रूर डालें। पशु कल्याण अधिवक्ता होने के नाते, हम जलीय कृषि के बारे में केवल इतना कह सकते हैं कि अन्य जानवरों के माँस का सेवन करने के बजाय मछलियों का उपभोग शुरू करना, पशुओं पर हो रहे अत्याचार को ख़त्म करने के रास्ते पर एक अस्थायी समाधान से ज़्यादा कुछ नहीं है। पशु कल्याण अधिवक्ता किसी ऐसे उपाय का समर्थन नहीं करेंगे जिसके परिणामस्वरूप अधिक पर्यावरणीय स्थिरता के साथ-साथ अधिक प्राणियों की जान जाने लगे, ख़ासकर जब बगैर क्रूरता के बेहतर पर्यावरणीय समाधान हमारे सामने उपलब्ध हैं। यदि आप समुद्री जीवों को खाना ही चाहते हैं, तो संभवतः द्विकपाटी सबसे बेहतर विकल्प है क्योंकि वे तुलनात्मक रूप से कम संवेदनशील होते हैं और पर्यावरण के लिए सबसे कम हानिकारक भी। अगर, आपके पास पशु माँस खाने का कोई वाजिब या अनिवार्य कारण नहीं है, तो कोशिश कर शाकाहार को अपनाएँ।
https://www.nature.com/articles/s41598-020-68231-8