मत्स्य कल्याण के लिए एक चेतावनी
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मत्स्य कल्याण के बारे में शायद ही किसी ने ज़्यादा सोचा होगा लेकिन हमें इसी सोच को बदलने की ज़रूरत है। मछलियों की सैकड़ों प्रजातियों को करोड़ों की संख्या में पाला जाता है। यह इतनी बड़ी संख्या है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। स्थल-जीवी प्राणी जैसे कि मुर्गी या भेड़, इन पर कई शोध हो चुके हैं, लेकिन जल-जीवी पशुओं को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया है।
बदकिस्मती से इस मुददे को ठोस करने के पीछे एक बड़ा कारण है वे अनगिनत तर्क जो कहते हैं कि मछलियाँ संवेदनशील नहीं होती क्योंकि उनमें संज्ञानात्मक क्षमता की कमी है। हालांकि, जैसे-जैसे शोध किए जा रहे हैं, जो व्यवहारात्मक और तंत्रिका-क्रियाविज्ञान संबंधित साक्ष्य मिल रहे हैं, उनसे साफ़ ज़ाहिर होता है कि ज़्यादातर मछलियों की प्रजातियाँ न सिर्फ़ सचेत हैं बल्कि वे शारीरिक और मानसिक तनाव भी महसूस कर सकती हैं। इन प्राणियों की भावनाओं पर ध्यान देने और उनकी पीड़ा की अवहेलना करने के बजाय उनके कल्याण के लिए यथा संभव कदम उठाने का यही सही समय है।
यह शोधपत्र मत्स्य कल्याण के महत्त्व पर रौशनी डालता है और 1986 में डॉनल्ड ब्रूम द्वारा दी गई परिभाषा पर गौर करता है, “पशु कल्याण का मतलब है जब एक पशु अपने वातावरण में ख़ुद को ढालने की कोशिश करता है, उस संदर्भ में उसकी अवस्था।“ पशुओं के कल्याण के लिए यह ज़रूरी है कि वह पशु एक अच्छी ज़िंदगी जिए| इसका मतलब सिर्फ़ उन चीज़ों को हटाना नहीं है जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता में कमी आ रही है बल्कि ऐसी चीज़ों को शामिल करना भी बेहद ज़रूरी है जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार आ सके। मान लीजिए आप एक कमरे में बंद हैं, जहाँ आपके पास खाना और पानी उपलब्ध है, साथ ही आपके पास घूमने-फिरने के लिए पर्याप्त जगह भी है। यहाँ भले ही आप शारीरिक तौर पर स्वस्थ रहेंगे, लेकिन अगर आप बाहर नहीं जा सकते, लोगों से मिल-जुल नहीं सकते या दूसरी आम गतिविधियाँ नहीं कर सकते तो आपको नहीं लगेगा कि आप एक अच्छी ज़िंदगी जी रहे हैं, है ना?
मत्स्य कल्याण को समझने का सबसे पहला और लोकप्रिय तरीका मात्र मछलियों के शारीरिक स्वास्थ्य पर गौर करता है: जैसे मृत्यु-दर, भूख, मछली के पंख की अवस्था आदि। भले ही मछली शारीरिक रूप से स्वस्थ हो, इसका मतलब यह नहीं है कि वे पूरी तरह स्वस्थ हैं क्योंकि यह विधि उनके मानसिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को बिल्कुल अनदेखा कर देती है। क्या वे अपनी सामान्य गतिविधियाँ कर पा रहे हैं? क्या उनके पास वे सभी संसाधन हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत है? क्या वे अपने दैनिक जीवन में उपलब्ध विकल्पों का चुनाव कर पा रहे हैं? ये कुछ सवाल हैं जो हमें पूछने चाहिए। कुछ शोध हुए हैं जो प्रजाति विशिष्ठ कल्याण-संकेतों पर ध्यान दे रहे हैं, जैसे कि गिल्ट-हेड समुद्री ब्रीम के सकारात्मक अनुभवों या ज़ेब्रा मछली के सकारात्मक भावनाओं के व्यवहारात्मक सूचकों पर किया गया आनुभविक अनुसंधान| हालाँकि आज भी ऐसी कई प्रजातियाँ हैं जिनके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है और अभी काफ़ी अनुसंधान करना बाकी है।
मछलियों का अवलोकन करना मुश्किल होता है क्योंकि वे अपनी ज़िंदगी पानी के अंदर ही गुज़ारते हैं। अटलांटिक रावस मछली पर सबसे ज़्यादा शोध हुए हैं और खाद्य के तौर पर उनका प्रमुखतः पालन किया जाता है, लेकिन उनके समुद्र में वापस चले जाने के बाद के व्यवहार और गतिविधियों के बारे में हमें ज़्यादा जानकारी नहीं है, जो उनके जीवन-काल का एक प्रमुख हिस्सा है। जब इस मछली का पालन किया जाता है, तो प्राकृतिक विस्थापन को ध्यान में रखते हुए रावस को पहले मीठे पानी के टैंक में बड़ा किया जाता है और फ़िर समुद्री पिंजरों में ले जाया जाता है। इससे यह सवाल उठता है कि कहीं इन मछलियों के प्राकृतिक विस्थापन की प्रक्रिया को पूरी तरह हटाने से कोई समस्या तो उत्पन्न नहीं हो रही है? क्या उनमें विस्थापन की तीव्र इच्छा है? क्या उन्हें प्राकृतिक रूप से विस्थापन न करने देने का कोई हानिकारक प्रभाव होता है? अपने समुद्री वातावरण में पहुँचने के बाद इन मछलियों को किस चीज़ की ज़रुरत होती है? हर साल करोड़ों की संख्या में रावस की कृषि की जाती है और उनसे जुड़े कई अनसुलझे सवालों में से ये चंद सवाल हैं|
दूसरा मुद्दा यह भी है कि मछलियों की कई प्रजातियाँ हैं और हर प्रजाति में बहुत भिन्नता है| खाना और पानी में घुले हुए ऑक्सीजन के अलावा, हर प्रजाति की अलग-अलग ज़रूरतें हैं और उनके स्वस्थ रहने के लिए इन्हें पूरा करना आवश्यक है| जिस तरह दो स्तनधारी जानवर, जैसे हाथी और चूहे की ज़रूरतें समान नहीं होती हैं, वैसे ही मछली की दो प्रजातियाँ बिल्कुल एक जैसी नहीं होती हैं| साथ ही हमें मछलियों के जीवनचक्र के दौरान उनकी बदलती ज़रूरतों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। स्टीलहेड ट्राउट मछली अपने जीवनकाल में खारे और मीठे पानी के बीच कई बार विस्थापन करती है। क्योंकि हमें नहीं पता कि वह ऐसा क्यों करती है, इसलिए हम यह भी नहीं जानते कि पालन के समय इस स्थिति का ख़याल कैसे रखा जाना चाहिए। अगर उन्हें विस्थापन न करने दिया जाए तो क्या इससे उनके कल्याण पर कोई असर पड़ेगा? या क्या वे सिर्फ़ अलग संसाधनों की खोज में विस्थापन करती हैं? इन सवालों के जवाब के बिना हम नहीं जान पाएँगे कि इन मछलियों की वास्तविक ज़रूरत क्या है।
मछलियों को स्थल-जीवी पशुओं की तरह पालतू नहीं बनाया गया है और शायद कभी नहीं बनाया जाएगा। इस प्रजाति के पालन पोषण की पूरी जानकारी उनके प्राकृतिक निवासरत वातावरण में अवलोकन करने से पाई गई हैं। दुर्भाग्यवश, कृत्रिम रूप से पाली गई मछलियों का जीवन सामान्य मछलियों के जीवन की तुलना में काफ़ी अलग होता है, जिस वजह से ये अवलोकन कम उपयोगी साबित हो रहे हैं। मछली पालक उन लक्षणों पर ही गौर करते हैं जिससे मत्स्य उत्पादन बढ़ाया जा सके, लेकिन इस उत्पादन से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
मत्स्य उद्योग में ज़बर्दस्त बढ़ोतरी हुई है और इससे प्रभावित होने वाले जानवरों की संख्या के संदर्भ में इसकी तुलना करना मुश्किल है – बहरहाल इस उद्योग के पास कल्याण की आवश्यक जानकारी और जो किया जाना चाहिए उसे करने की मंशा, दोनों की कमी है। एक समाज के तौर पर हमने स्थल-जीवी जानवरों की बड़े पैमाने पर उत्पादन के मामले में कई गलतियाँ की हैं। हमारे पास एक अवसर है कि हम उन गलतियों से सीखें और मत्स्य पालन के तरीकों को बदलें। आखिर, यह करोड़ों पशुओं के जीवन का सवाल है।
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