भारत में, ज़ूनॉटिक रोग पौधे आधारित आहार को बढ़ावा देने का कारण बन सकते हैं
This post has been translated from English to Hindi. You can find the original post here. Thanks to Tipping Point Private Foundation for generously funding this translation work.
माँस के सेवन से एच1एन1 (स्वाइन फ्लू), एच7एन9 (बर्ड फ्लू) और इबोला जैसी नई उभरती हुई बीमारियों की चपेट में आने का ख़तरा बढ़ जाता है। पशुधन में एंटीबायोटिक दवाओं के अधिक उपयोग से रोगाणुरोधी प्रतिरोध का ख़तरा उत्पन्न होता है, पालतू पशुओं के आवासों में भीड़-भाड़ और अस्वच्छ परिस्थितियाँ रोगजनकों को बड़ी आसानी से फ़ैलने में मदद करते हैं, इसके साथ ही इन रोगों के विकसित होने का ख़तरा जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हुआ है, जो माँस के सेवन से बढ़ जाता है। संयुक्त राष्ट्र की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, “ज़ूनॉटिक रोगों (ऐसे रोग जो पशुओं के माध्यम से मनुष्यों में फ़ैलते हैं यानी पशुजनित) में वृद्धि के लिए सात कारकों को चिन्हित किया गया है”, जिनमें से एक पशु प्रोटीन की बढ़ती माँग है।
बहरहाल, पूरी दुनिया में कोविड-19 महामारी का कहर अब भी जारी है, तो क्या भविष्य में पशुजनित रोगों के पनपने की चिंता अधिक लोगों को पौधे-आधारित आहार अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है? इस बारे में पता लगाने के लिए, शोधकर्ताओं ने दिल्ली और भारत के राजधानी इलाके में 757 प्रतिभागियों को मई-जून 2020 में एक ऑनलाइन सर्वेक्षण पूरा करने के लिए कहा, जिसमें आहार और ज़ूनॉटिक संबंधित रोगों के बारे में उनकी राय का आँकलन किया गया था।
शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिकांश लोगों को आहार और ज़ूनॉटिक रोगों के बीच संबंध के बारे में पता था: लगभग 80% का मानना था कि “पशु उत्पादों के सेवन से ज़ूनॉटिक जैसे कई संक्रामक रोगों को फ़ैलाने में मदद मिलती है,” और लगभग आधे का कहना था कि माँस खाने से “मनुष्यों और जानवरों में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी रोगों का ख़तरा बढ़ जाता है।” माँसाहारी लोगों की तुलना में, शाकाहारियों को दोनों विषयों के बारे में अधिक जानकारी थी।
शोधकर्ताओं ने यह भी जाना कि यह जानकारी आहार संबंधित निर्णय और विकल्पों को प्रभावित कर सकती हैं। 73% प्रतिभागियों का कहना था कि शाकाहारी या वीगन आहार अपनाने से ज़ूनॉटिक रोगों के फ़ैलने की संभावना कम हो जाएगी। जब उनसे कोविड -19 महामारी के मद्देनज़र यह सवाल पूछा गया तो लगभग 40% माँसाहारी लोगों ने कहा कि “कोविड -19 महामारी के बाद वे शाकाहारी / वीगन आहार अपनाने पर विचार कर रहे हैं।”
सभी सर्वेक्षणों की तरह, इस रिपोर्ट की भी अपनी सीमाएँ हैं: इसमें सर्वेक्षण की गई आबादी भारत के सिर्फ़ एक क्षेत्र को दिखाती है और उम्र और लिंग जैसे कारकों के संदर्भ में सामान्य जनसंख्या को नहीं दर्शाती है और ना उनसे मेल खाती है। अन्य अध्ययनों और फॉनालिटिक्स के स्वयं के शोध – को ध्यान में रखते हुए पता चलता है कि इस तथ्य के बावजूद कि ज़ूनॉटिक रोगों के आहार संबंधित ख़तरों के बारे में जानकारी देना प्रो-वी*न (शाकाहारी) समर्थक संदेश देने का महत्वपूर्ण हिस्सा साबित हो सकता है, लेकिन यह ज़्यादा प्रभावी तब होगा जब इसे सावधानी बरतते हुए संवेदनशीलता और सम्मानपूर्वक दिया जाएगा।