हाल के प्रमाणों के मुताबिक़ क्लीनर मछलियाँ आईने में ख़ुद को पहचान सकती हैं
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जब कोई जानवर अपने शरीर से ऐसा निशान साफ़ करने की कोशिश करता है जो केवल आईने में देखने पर दिखाई देता है तो इस क्षमता को दर्पण आत्म-पहचान (एमएसआर/MSR) कहते हैं, जिसे आमतौर पर आत्म-जागरूकता का सबूत माना जाता है। कशेरुकियों की कई प्रजातियों पर MSR परीक्षण किया गया है, जिनमें कुछ वानर, बंदर, सूअर, कुत्ते, बिल्लीयाँ और तोते में नकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। MSR व्यवहार को कुछ हाथी, डॉल्फ़िन, घोड़े, मैगपाई और कौवे में देखा गया है, हालाँकि ऐसे निष्कर्षों की कड़ी आलोचना की गई है। वास्तव में, एकमात्र प्रजाति जिन्होंने MSR परीक्षण पास किया है और इस प्रकार आत्म-जागरूकता दिखाई है, वह चिंपांज़ी और वनमानुष हैं।
Faunalytics के पिछले सारांश में एशिया की उष्णकटिबंधीय मछली की एक प्रजाति, क्लीनर रैस, पर किए गए MSR परीक्षण के बारे में बताया गया था। क्योंकि पशु समूह और प्रजातियाँ जैविक रूप से भिन्न होती हैं- उदाहरण के लिए, सभी प्रजातियाँ दृश्य संकेतों पर निर्भर नहीं होती हैं- लेखकों ने तर्क दिया कि इस प्रकार का परीक्षण आत्म-जागरूकता को मापने का उपयुक्त तरीका नहीं हो सकता है। जब अधिकांश मछलियाँ खुद को आईने में पहचानती दिखाई दीं तो यह परिणामों का एक उम्मीद भरा संकेत दे रहा था। यह सुनिश्चित करने के लिए कि मछलियों ने वास्तव में परीक्षण पास किया है, आलोचक सकारात्मक परिणाम दिखाते हुए बार-बार किए गए अध्ययन देखना चाहते थे और यह भी देखना चाहते थे कि कितनी मछलियाँ परीक्षण पास कर सकती हैं, इसके अलावा उन्होंने आईने से संबंधित व्यवहार के अन्य कारणों को रद्द करने के लिए और अधिक शोध की माँग भी की। मूल अध्ययन की शोध टीम ठीक यही हासिल करने के लिए निकल पड़ी।
अधिक मछलियों का परीक्षण करने के अलावा, शोध टीम ने पारिस्थितिक पृष्ठभूमि की जाँच की। पिछले अध्ययन में, उन्होंने क्लीनर रैस मछली पर भूरे रंग का निशान लगाया था क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वे उन परजीवियों के रंग से मिलते-जुलते हैं जिन्हें वे खाते हैं। इस अध्ययन में, यह समझने के लिए कि रंग दर्पण-संबंधी व्यवहार को कैसे बदल सकता है, उन्होंने मछलियों पर नीले और हरे रंग का निशान लगाया। MSR परीक्षण के लिए वैकल्पिक कारणों को खारिज करने के लिए, शोधकर्ताओं ने निम्नलिखित कदम उठाए:
● यह देखने के लिए कि क्या मछली आईने में अपना प्रतिबिंब देखने के बजाय खुद आईने की आदी तो नहीं हो गई थीं, उन्होंने आईने का स्थान बदल दिया।
● उन्होंने ना केवल उन मछलियों का परीक्षण किया जिनका पहले आईने से परिचय कराया गया था बल्कि उन मछलियों को भी शामिल किया जिन्हें पहली बार आईने के सामने लाया गया था, ऐसा यह मानते हुए किया गया था कि केवल आईने से परिचित मछलियाँ ही परीक्षा पास करने में सक्षम होंगी।
● यह देखने के लिए कि क्या क्लीनर मछलियाँ अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों को उनके शरीर पर मौजूद निशान से पहचान सकती हैं या नहीं, उन्होंने क्लीनर मछलियों के जोड़े को एक दूसरे के सामने रखा।
आश्चर्य की बात तो यह है कि मानक दर्पण के साथ परीक्षण की गई सभी 14 मछलियाँ प्रयोग में सफल रहीं थीं। इसने टीम द्वारा जाँची गई क्लीनर रैस की संख्या को 18 तक बढ़ा दिया था- चिंपांज़ी को छोड़कर परीक्षण किए गए किसी भी गैर-मानव प्राणी के लिए सबसे बड़ा आँकड़ा था। डॉल्फ़िन को छोड़कर, मछली की इस प्रजाति ने 94% की दर से परीक्षण पास किया था। इसकी तुलना में, अन्य पशु प्रजातियों का केवल एक छोटा सा हिस्सा परीक्षण पास कर पाया था, जैसे: चिंपांज़ी में 40%, वनमानुष में 50%, गोरिल्ला में 30%, एशियाई हाथियों में 30% और मैगपाई में 40%।
शोधकर्ताओं के अनुसार, मछलियों ने केवल आईने में देखने के बाद निशान को मिटाने का प्रयास किया था इसलिए त्वचा की परेशानी या जलन को अन्य संभावित कारण के रूप में खारिज कर दिया गया। तथ्य यह है कि जब निशान को गहराई से लगाया गया तो आईने में देखे बिना ही इन प्राणियों ने ख़ुद को खरोंचने की कोशिश की, यह इस विचार का समर्थन करता है कि पहले लगाया गया निशान केवल देखने पर ही पहचाना गया था। जिन मछलियों ने पहले कभी आइना नहीं देखा था, उन्हें अपनी गर्दन पर निशान को पहचानने में अधिक समय लगा और किसी अन्य मछली पर लगे निशान को देखने से उन्होंने ख़ुद को नहीं ख़रोंचा, जिससे यह साबित होता है कि मछलियाँ खुद को दूसरों से अलग कर पहचान सकती हैं। अंत में, आईने का स्थान बदलने से आक्रामक व्यवहार देखने को नहीं मिला था, जिससे पता चलता है कि मछलियाँ आईने के किसी विशेष स्थान की आदी होने के बजाय आईने में खुद को पहचान सकती हैं। यह व्यवहार रीसस मकाक से विपरीत है, जिसे देखकर लग रहा था कि वह MSR परीक्षण पास कर पाएगा लेकिन जब आईने का स्थान बदला गया तो वह आक्रामक हो गया।
लेखक विभिन्न प्रजातियों में दर्पण आत्म-जागरूकता की जाँच करते समय पारिस्थितिक रूप से प्रासंगिक निशान का उपयोग करने के महत्व पर ज़ोर देते हैं। इस उदाहरण में, क्लीनर रैस ने भूरे रंग के निशान (उनके भोजन के स्रोत के आकार और रंग के समान) पर प्रतिक्रिया दी, लेकिन नीले और हरे रंग के निशान को अनदेखा कर दिया। आत्म-पहचान के अलावा, क्लीनर मछलियों में अतिरिक्त अत्यधिक विकसित संज्ञानात्मक क्षमताएं होती हैं। इनमें सामाजिक उपकरणों का उपयोग, विन्यासात्मक शिक्षा और उनकी समजातीयता के आधार पर निर्णय लेना शामिल हैं। इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि हम निश्चित रूप से यह दावा नहीं कर सकते कि क्लीनर मछलियों में आत्म-जागरूकता होती है। लेकिन, पिछले और इस अध्ययन के प्रमाणों को नकारना मुश्किल है। अंत में, शोधकर्ता सलाह देते हैं कि भविष्य में बेहतर अध्ययन के लिए या तो जानवरों में आत्म-जागरूकता विकसित करने के मानदंड या मिरर टेस्ट की वैधता को बदलने की आवश्यकता है।
भले ही आत्म-जागरूकता का स्तर प्रजातियों के बीच अलग-अलग कारणों से भिन्न हो सकते हैं, यह इस बात से संबंधित नहीं हैं कि एक प्रजाति मिरर टेस्ट में कैसा प्रदर्शन करती है, लेकिन यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि क्लीनर मछली क्या करने में सक्षम हैं। मछली पालन के उद्योग में हो रही बढ़ोतरी के कारण अन्य मछलियों से परजीवियों को चुनकर हटाने की अद्भुत क्षमता के कारण आमतौर पर लम्पफिश और रैस का जलीय कृषि उद्योग (एक्वाकल्चर) में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। अफ़सोस की बात है कि उनके कल्याण और ज़रूरतों की काफ़ी हद तक अनदेखा किया गया है और पशु समर्थक इस अध्ययन के परिणामों का उपयोग इस पर सवाल उठाने के लिए कर सकते हैं।